Monday, 24 April 2017

तनख़्वाह

साथियो! बेचारी, डरी-सहमी “कमसिन तनख़्वाह” चुपचाप सर झुकाए चली आ रही थी और उसे देखकर किश्त, बिल, खर्चा और "जरुरत" नाम के कुख्यात गुंडे सीटी बजा रहे थे। आखिरकार “तनख़्वाह” लुट ही गई....!!